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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्राचीन विधायें

प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।

अथवा
'हिन्दी भाषा के नाटकों की परम्परा न तो बहुत पुरानी है और न बहुत मौलिक' इस कथन की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा
हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास पर निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

साहित्य के द्रव्य और श्रृव्य दो विभेद किये जाते हैं जिनमें से दृष्टकाव्य का आजकल माध्यम नाटक ही है। नाटक के उद्भव की दृष्टि से यद्यपि यह तथ्य उल्लेखनीय है कि संस्कृत के साहित्य में नाटकों की बड़ी समृद्ध परम्परा रही है, तथापि नाटक के आधुनिक स्वरूप पर पाश्चात्य नाटकों का ही अधिक प्रभाव है। चौदहवीं से लेकर उन्नीसवी शताब्दी तक ब्रजभाषा में कुछ मौलिक नाटक भी लिखे गये और संस्कृत के नाटकों का अनुवाद किया गया उदाहरण के लिए विद्यापति के रुक्मिणी हरण, कृष्ण, जीवनचरित, प्राणचन्द का रामायण महानाटक, हृदय का हनुमन्नाटक बनारसीदास का समपसार, निवाज का शकुन्तला तथा ब्रजभाषी दास का प्रबोध चन्दोम ऐसे ही नाटक हैं, जिनमें मौलिकता के साथ-साथ संस्कृत के नाटकों का प्रभाव परिलक्षित होता है। उपर्युक्त सभी नाटक पधबद्ध हैं।

हिन्दी गद्य में लिखा गया प्रथम नाटक कौन-सा है ? यह तथ्य किचित विवादास्पद है। कुछ विद्वान ब्रजभाषा गद्य में लिखा गया प्रथम नाटक भारतेन्दु के पिता गिरिधरदास रचित 'नहषु' नामक नाटक को मानते हैं। राजा लक्ष्मण ने कालिदास के शकुन्तला नामक नाटक का अनुवाद करते हुए उसके पद्य भाग के लिए ब्रजभाषा तथा गद्य भाग के लिए खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कुछ विद्वान् सन् 1830 ई0 में रचित महाराज विश्वनाथ सिंह के आनन्द रघुनंदन नामक नाटक को हिन्दी का प्रथम आधुनिक नाटक स्वीकार करते हैं। वास्तव में नहुष की भाँति आनन्द रघुनन्दन में भी नाटकीय तत्वों का सम्यक पुट नहीं मिलता। अधिकांश विद्वान् नाटकों के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को स्वीकार करते हैं, क्योंकि स्वयं उनके द्वारा अनुवादित और मौलिक रूप में लिखित नाटकों द्वारा ही हिन्दी के नाटक साहित्य का विकास प्रारम्भ होता है। विकासक्रम की दृष्टि से आधुनिक कालीन नाटक साहित्य को निम्नांकित तीन युगों में विभक्त किया जा सकता है

(1) भारतेन्दु युग - भारतेन्दु युगीन नाटकों के स्वरूप में भारतीय नाट्य शास्त्र तथा पाश्चात्य नाटकों के स्वरूप के तत्वों का समन्वय दृष्टिगोचर होता है। एक ओर उनमें संस्कृत के नाटकों के समान नान्दी, प्रस्तावना, विदूषक भरत वाक्य आदि की योजना की गयी है, तो दूसरी ओर अंग्रेजी और बंगला नाटकों के प्रभाव के कारण उनमें से इन तथ्यों की योजना के प्रति शिथिलता तथा अन्तर्द्धन्द के चित्रण पर अधिक बल दिये जाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। भारतेन्दु काल में तीन प्रकार के नाटक मिलते हैं-

(क) अनुवादित नाटक - अनुवादित नाटकों के वर्ग में बंगला और अंग्रेजी और संस्कृत के नाटकों का ही हिन्दी में रूपान्तरण आता है। पं. सत्यनारायण कविरत्न तथा भारतेन्दु जी ने संस्कृत के नाटकों का हिन्दी में अनुवाद किया। सन् 1861 में राजा लक्ष्मणसिंह द्वारा कालिदास के प्रसिद्ध नाटक, अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अनुवाद किया। अंग्रेजी नाटकों का हिन्दी में अनुवाद करने की दिशा में लाला सीताराम का नाम उल्लेखनीय है, जबकि बंगला नाटकों का अनुवाद करने की दृष्टि से रूपनारायण पाण्डेय का नाम उल्लेखनीय है। भारतेन्दु जी ने भी बंगला के विद्यासुन्दर नामक नाटक का हिन्दी में छायावाद प्रस्तुत किया।

(ख) पारसी कम्पनियों के लिए लिखे गये नाटक - इस वर्ग के नाटककारों में रौनक बनारसी, अहसान लखनवी, विनायक प्रसाद, नारायण प्रसाद वेताब, राधे श्याम कथावाचक तथा आगा हश्र कश्मीरी के नाम विशेष उल्लेखनी है। इन नाटकों में साहित्यिकता के स्थान पर ऐसी सामग्री की प्रधानता रहती थी. जिससे जनता का सस्ता मनोरंजन करके पैसा बटोरा जा सके। प्रसिद्धि की दृष्टि से राधेश्याम कथावाचक का वीर अभिमन्यु तथा रौनक बनारसी का इन्साफे महमूद और गुल बकावली अपने समय के बड़े प्रसिद्ध नाटक थे।

(ग) मौलिक नाटक - मौलिक नाटक लिखने के क्षेत्र में सर्वप्रथम भारतेन्दु ही थे, जिनके सत्य हरिश्चन्द, नील देवी, भारत दुर्दशा, चन्द्रावती और अंधेर नगरी पाखण्ड विडम्बना, वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति, प्रेम योगिनी आदि नाटक प्रसिद्ध है। अपने नाटकों के माध्यम से भारतेन्दु जी ने एक ओर जहां राष्ट्रवासियों को उद्बोधित करने की चेष्टा की है, वहीं सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किये हैं। भारतेन्दु काल में पौराणिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय जागरण सम्बन्धी सभी प्रकार के विषयों पर नाटक लिखे गये है - भारतेन्दु कृत-नील देवी, राधाकृष्णदास कृतं पद्मावती और महाराणा प्रतापः बैकुठनाथ दुग्गल कृत-श्री- हर्ष, गोपालराव कृत यौवन- योगिनी आदि। राष्ट्रीय जागरण सम्बन्धी नाटकों में उल्लेखनीय हैं भारतेन्दु कृत भारत दुर्दशा, शरद कुमार मुखर्जी कृत भारतोद्वारा खडग बहादुर मल्ल कृत भारत-भारती आदि। पौराणिक नाटकों में उल्लेखनीय है दामोदर सप्रेम का रामलीला शीतला प्रसाद त्रिपाठी का रामचरितावली; अयोध्यासिंह उपाध्याय के प्रद्युम्न विजय और रुक्मणी परिणय बद्रीनारायण चौधरी प्रेमध का महादास आदि।

भारतेन्दु युग में अन्य अनेक नाटककार भी हुए जिनमें से विशेष उल्लेखनीय हैं- श्री बालकृष्ण भट्ट, जिनके लिखे छः नाटक मिलते हैं

(क) कविराज की सभा
(ख) रेल का विकट खेल
(ग) कलिराज की सभा
(घ) बाल विवाह,
(ङ) चन्द्रलेखा
(च) शर्मिष्ठा और देवयानी

भारतेन्दु युग के अन्य नाटककार और उनके नाटकों के नाम इस प्रकार हैं श्रीनिवासदास संयोगिता स्वयंवर, धर्मवीर प्रेम - मोहिनी, प्रहलाद चरित प्रतापनारायण मिश्र गौ-संकट, हठी हमीर, कली प्रभाव जुआरी सुकुमारी राधाचरण गोस्वामी, अमर सिंह राठौर, सती चन्द्रावती आदि। राधाकृष्ण दास, महाराणा प्रताप, श्री दामा दुःखिनी बाला, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमधन-प्रयाग रामागमन, भारत सौभाग्य, वीरांगना रहस्य वृद्ध विलाप आदि। इस युग के नाटक भाषा की सरलता रोचकता और हास्य व्यंग से ओत-प्रोत होने के कारण जन रुचि को अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल तो हुए किन्तु नाटक के विकास की दृष्टि से भारतेन्दु काल को उनका शैशव ही मानना चाहिए। उनका विकास तो प्रसाद काल में जाकर हुआ।

(2) प्रसाद युग - प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। जहां उन्हें आधुनिक युग का सर्वोत्कृत कवि स्वीकार किया जाता है, वहीं उनको नाटक सम्राट भी स्वीकार किया जाता है। भारतेन्दु काल में हिन्दी नाटक का जो पादर्प (पौधा) आरोपित किया गया, वह प्रसाद काल में जाकर ही पुष्पित एवं फलित हुआ। प्रसाद जी ने नाटकों को वर्ण्य वस्तु शिल्प-विधान विषय के प्रतिपादन और भाषा के क्रान्तिकारी परिवर्तन किये उनके नाटकों का ऐसा गंगा-जमुना मिश्रण है कि उन्हें न तो सुखान्त कहा जा सकता है और न दुःखान्त ही, अपितु उनके नाटकों के लिए प्रसादान्त विशेषण का प्रयोग किया जाता है।

प्रसाद जी भारत के अतीत वैभव के प्रशंसक थे अतः उन्होंने अपने नाटकों के विषय का चयन भी अधिकांशतया मौर्य और गुप्त काल से किया है। इसके साथ ही प्रसाद जी मूलतया कवि थे, अतः उनके नाटकों में जहाँ गीतों का बाहुल्य है, वहीं उनकी भाषा में भी काव्यात्मकता का पुट है। प्रसाद जी ने तेरह नाटकों की रचना की है जो वर्ण्य विषय की दृष्टि से पौराणिक और ऐतिहासिक है। उनके नाम हैं-

(1) सज्जन,
(2) कल्याणी परिणय
( 3 ) करुणालय
(4) प्रायश्चित
(5) राज्यश्री
(6) विशाखा,
(7) अजातशत्रु
(8) जनमेजय का नागयज्ञ,
(9) स्कन्दगुप्त,
( 10 ) एक घूंट
(11) कामना
( 12 ) चन्द्रगुप्त,
(13) धुस्वामिनी

प्रसाद जी के नाटकों में से कामना और घूँट एकांकी नाटक है। उनका चन्द्रगुप्त शीर्षक नाटक कल्याणी परिणय नाटक का ही परिवर्तित रूप था, अतः उनके लिखे नाटकों की संख्या बारह ही स्वीकार करना चाहिए। प्रसाद जी के नाटकों में भारतीय नाट्यशास्त्र के सिद्धान्तों को अपनाने के स्थान पर पाश्चात्य नाटकों के तत्वों का अधिक प्रभाव है। उनके अधिकांश नाटकों में नान्दी, प्रस्तावना, विदूषक और भरत वाक्य की योजना नहीं मिलती। श्री हरिकृष्ण प्रेमी, सेठ गोविन्द दास, उदयशंकर भट्ट, लक्ष्मीनारायण मिश्र और गोविंद बल्लभ पंत आदि नाटकारों ने यद्यपि प्रसाद काल में ही नाटक रचना आरम्भ कर दी थी, किन्तु उन्हें प्रौढ़ता प्रसाद काल के पश्चात् ही उपलब्ध हुई। अतः उनके नाटकों का प्रसादोत्तर काल के अन्तर्गत प्रकाश डालना ही उचित है।

(3) प्रसादोत्तर काल - प्रसादोत्तर काल में नाटक साहित्य का द्रुत गति से अनेक रंगी विकास हुआ जिसे स्थूलतया तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(क) ऐतिहासिक पौराणिक नाटक - ऐतिहासिक पौराणिक नाटकों में रचयिताओं में श्री हरिकृष्ण प्रेमी का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जिन्हें प्रतिशोध, शिखा, साधना, उद्धार शपथ, स्वप्न भंग, आहुति प्रकाश स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ आदि लगभग बीस ऐतिहासिक पौराणिक नाटकों की रचना की है। इस वर्ग के अन्य नाटकाकर और उनके प्रसिद्ध नाटकों के नाम हैं-

सेठ गोविन्ददास (इन्होंने लगभग 100 नाटक लिखे हैं) शशि गुप्त और हर्ष उदयशंकर भट्ट शक विजय, मुक्ति पथ, दाहर, मत्स्यगंध, अम्बा, विश्वामित्र वृन्दावनलाल वर्मा पूर्व की ओर, झांसी की रानी, ललित विक्रम, बीरबल लक्ष्मीनारायण मिश्र वस्तराज, गरुड़ध्वज विरतता की लहरें गोविन्द बल्लभपंत- ययाति, अंतपुर का छिद्र, वरमाला, राजमुकुट देवराज दिनेश, प्रतिशोध, मानव प्रताप, यशस्वी भोज मोहन राकेश आषाढ़ का एक दिन, लहरों का राजहंस, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, सदगुरुशरण अवस्थी, पाण्डेय वेचन शर्मा उग्र, रामवृक्ष बेनीपुरी, चतुरसेन शास्त्री आदि ने भी ऐतिहासिक नाटकों की रचना की है।

(ख) समस्या प्रधान तथा सामाजिक नाटक - इस श्रेणी में नाटकों में नाना प्रकार की सामाजिक समस्याओं को उभारा गया है। कुछ ऐसे नाटक भी लिखे गये हैं, जिनमें किसी समस्या को प्रस्तुत करना ही नाटककार का मूल्य ध्येय रहता है। इन्हें समस्या प्रधान नाटक कहते हैं और इस प्रकार के नाटककारों में लक्ष्मी नारायण विशेष प्रसिद्ध है। इनके प्रसिद्ध समस्या नाटकों के नाम है सन्यासी राजयोग मुक्ति का रहस्य, राक्षस का मन्दिर, गरुड़ध्वज, नारद की वीणा, आधीरात, सिन्दूर की होली।

सामाजिक नाटकों में सेठ गोविन्ददास, वृन्दावनलाल वर्मा, गोविन्द बल्लभ पन्त और उपेन्द्रनाथ विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा नाटकों के नाम हैं सेठ गोविन्ददास कृत सेवा-पथ सन्तोष कहाँ दुःख क्यों, सिद्धान्त स्वातन्त्र्य, त्याग या ग्रहण कुलीनता, पाकिस्तान, गरीबी अमीरी आदि वृन्दावनलाल वर्मा कृत राखी की लाज, केवट, विस्तार, खिलौने की खोज बांस की फॉस, नीलकण्ठ, देखा-देखी आदि गोविन्दबल्लभ पन्त कृति की अंगूर की बेटी, सिन्दूर की बिन्दी आदि उपेन्द्रनाथ अश्क कृत स्वर्ग झलक, छठा बेटा, कैद, उड़ान, अलग-अलग रास्ते आदि।

(ग) एकांकी, रेडियो-रूपक, काव्य-रूपक आदि एकांकी (एक अंक का नाटक) - नाटककारों में डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम सर्वोपरि है, जिसके पृथ्वीराज की आंखें, चारुमित्रा, ऋतुराज, रेशमी टाई, ध्रुवतारिका, दीपदान आदि एकांकी संग्रह प्रसिद्ध है। अन्य एकांकी नाटककारों में उल्लेखनीय है - उपेन्द्रनाथ अश्क (तूफान से पहले देवताओं की छाहा चरवाहे) सेठ गोविन्ददास ( नानक की नमाज, बुद्ध की एक शिष्या, युग, स्त्री का हृदय, पर्दे के पीछे) जगदीश चन्द्र माथुर (भोर का तारा, कलिंग विजय रीढ़ की हड्डी, मकड़ो का जाला, खण्डहर, बंदी तथा घोसले, खिड़की की राह )। अन्य एकांकीकार है - भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र भगवतीचरण वर्मा, गिरिजाकुमार माथुर, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, सदगुरु शरण अवस्थी आदि।

भाव- नाट्य या गीत नाट्यकारों में श्री उदयशंकर भट्ट का विशेष योगदान है जिनके राधा मत्स्यगंधा और विश्वामित्र उच्चकोटि के गीति नाट्य हैं। इनके अतिरिक्त मैथिलीशरण गुप्त - अनद्य, उर्वशी रामधारी सिंह दिनकर उन्मुक्त आदि।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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